हमारा ग्रह एक मात्र ऐसा ग्रह है जिस पर जीवन का संभव होना 'ज्ञात' है लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि और किसी ग्रह पर जीवन है ही नहीं.
सृष्टि में प्रत्येक गैलेक्सी में अरबों-खरबों ग्रह हैं, प्रत्येक ब्रह्माण्ड में अरबों-खरबों गैलेक्सियां हैं,और आकार क्षेत्र में अरबों-खरबों ब्रह्माण्ड हैं.
अगर हम असंख्य ब्रह्मांडों को एक बार भूल भी जायें, तो ऐसे बहुत से ग्रह हमारे 'अपने ब्रह्माण्ड' में ही हैं जिन पर जीवन संभव है, और जहां एलियन प्रजातियाँ पाई जाती हैं.
सृष्टि में प्रत्येक गैलेक्सी में अरबों-खरबों ग्रह हैं, प्रत्येक ब्रह्माण्ड में अरबों-खरबों गैलेक्सियां हैं,और आकार क्षेत्र में अरबों-खरबों ब्रह्माण्ड हैं.
अगर हम असंख्य ब्रह्मांडों को एक बार भूल भी जायें, तो ऐसे बहुत से ग्रह हमारे 'अपने ब्रह्माण्ड' में ही हैं जिन पर जीवन संभव है, और जहां एलियन प्रजातियाँ पाई जाती हैं.
यहाँ मैं अपने पसंदीदा लेखक Arthur C. Clarke का एक कथन बताना चाहूँगा:
"Almost certainly there is enough land in the sky to give every member of the human species, his own private world! But how many of those potentially habitable worlds are ALREADY inhabited, we have no way of knowing!
प्रत्येक ब्रह्माण्ड अंडाकार होता है और इसमें तीन लोक एवं 14 नक्षत्रिय तंत्र होता है. और इसके नीचे 28 नर्क होते हैं.
ऋषियों ने प्रत्येक गैलेक्सी की तुलना Spinal Cord में स्थित विभिन्न कुंडलिनियों से की है। ध्यान योग से एक मनुष्य इन कुंडलियों की शक्तियों को जगा सकता है और इन कुंडलनी के जाग्रण से मानव मन का उर्ध्व रूपांतरण होता है।
अभी तक सभी कुंडलिनी चक्रों को जगाने में सफल सिर्फ एक व्यक्ति हुआ है जिनका नाम है गौतम बुद्ध।
मध्यलोक में हमारी पृथ्वी के अलावा 6 अन्य ग्रहों पर भी जीवन बसा करता है।
Yet, as he quite eloquently states, the barriers of distance are crumbling; one day SOON we may meet our Equals, or our Masters, among the stars. "
"निश्चित तौर पे अंतरिक्ष में लगभग इतना पर्याप्त स्थल मौजूद है कि प्रत्येक इंसान को उसकी अपनी एक दुनिया दी जा सकती है. लेकिन उनमें से कितने उस संसार में बसने कि क्षमता रखते हैं जो पहले से बसे हुए हैं, ये जानने का कोई तरीका नहीं है. लेकिन जिस तरह से दूरियों की बाधाएं दूर हो रही है हम जल्द ही दुसरे ग्रह पर रहने वाले उन लोगों से मिलेंगे जो हमारी ही तरह हैं या फिर हमारे भी स्वामी हैं."
हमारी वर्तमान स्थिति:
दुर्भाग्यवश मानव प्रजाति आज कुएं का मेढक बनी हुयी है. लम्बे समय से हम ब्रह्माण्ड के अतिअल्प् ज्ञान में फंसे हुए हैं.इसलिए हम ये भूल जाते हैं कि हमारे कुएं के बाहर भी एक महान दुनिया है.
बाहर बहुत से सौर मंडल , गैलेक्सी और ब्रह्माण्ड हैं.और याद रखने वाली बात कि हमारे अलावा भी अन्य ग्रहों पर जीवन है.
आईये हम अपनी यात्रा की शुरुवात ब्रह्माण्ड में अपनी मौजूदा स्थिति के साथ करते हैं:
इस विडियो से हमें ये एहसास हो जाता है के इस विशाल ब्रह्माण्ड में हम कितने नगण्य सूक्ष्म हैं.और बाहर जो असंख्य ग्रह हैं उनकी हमें तनिक भी जानकारी नहीं है।
इस विडियो में आपको हमारी गैलेक्सी-मिल्की वे (Milky Way) या शिशुमार दिखाई दी होगी।
भारतीय दर्शन के अनुसार ब्रह्माण्ड की संरचना:
ये हमारा सौभाग्य है कि हमारे पूर्वज हमारी तरह कूप मण्डूक, अल्पज्ञानी और सीमित विज्ञानी नहीं थे. और उन्होंने ग्रहों नक्षत्रों और बहुल-ब्रह्मांडों का वर्णन हमें लिखित रूप में दिया है। बहुल-ब्रह्माण्ड को विज्ञान में Multiverse कहते हैं और एक कोष में सभी ब्रह्मांडों के उपस्थित होने को Omniverse कहते हैं.
जैसे कि पिछली पोस्ट "सृजन" में बताया था सृष्टि में 2 क्षेत्र हैं: आध्यात्मिक क्षेत्र (Spiritual Realm) और आकार क्षेत्र (Material Realm).आध्यात्मिक क्षेत्र (Spiritual Realm) सभी शुद्ध आत्माओं का घर है जो वैकुण्ठ ग्रह पे रहती हैं और आकार क्षेत्र (Material Realm) में बहुत सारे ब्रह्माण्ड होते हैं जिनमें से एक हमारा ब्रह्माण्ड भी है।
जैसे कि पिछली पोस्ट "सृजन" में बताया था सृष्टि में 2 क्षेत्र हैं: आध्यात्मिक क्षेत्र (Spiritual Realm) और आकार क्षेत्र (Material Realm).आध्यात्मिक क्षेत्र (Spiritual Realm) सभी शुद्ध आत्माओं का घर है जो वैकुण्ठ ग्रह पे रहती हैं और आकार क्षेत्र (Material Realm) में बहुत सारे ब्रह्माण्ड होते हैं जिनमें से एक हमारा ब्रह्माण्ड भी है।
पुराण ने हमारे ब्रहमांड को तीन विभिन्न लोकों में वर्गीकृत किया है:
१.उर्ध्व लोक (Highest Realm)
२.मध्य लोक (Middle Realm)
३.अधो लोक (Lowest Realm)
विभिन्न ग्रन्थ बहुत से लोकों की बात करते हैं. महाभारत के युद्ध के समय जब अर्जुन अपने कर्तव्यों से पथभ्रमित हो गए थे तब कृष्ण ने उन्हें दिव्य दृष्टि प्रदान की, जिस से अर्जुन को भगवान् के विराट रूप के दर्शन हुए.
भगवान् के इस रूप में अर्जुन को सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड का रूप दिखाई दिया. भगवान् के सिर से पाँव तक अर्जुन को 14 नक्षत्रिय विमाओं के दर्शन हुए.
प्रत्येक नक्षत्रिय तंत्र एक गैलेक्सी होती है।
प्रत्येक नक्षत्रिय तंत्र एक गैलेक्सी होती है।
Virat Roop of Lord Krishna |
आइये हम इस 14 गैलेक्सी तंत्र को समझने की कोशिश करते हैं और इनके भौगोलिक एवं अन्तरिक्ष व्यवस्था को भी जान ने की कोशिश करेंगे.
कृपया इस विडियो को ध्यान से देखें क्योंकि इसमें भगवत पुराण के अनुसार 14 गैलेक्सीयों का बहुत अच्छा वर्णन है,जिसके आधार पे इस पोस्ट में आगे की बातें लिखी हैं:
कृपया इस विडियो को ध्यान से देखें क्योंकि इसमें भगवत पुराण के अनुसार 14 गैलेक्सीयों का बहुत अच्छा वर्णन है,जिसके आधार पे इस पोस्ट में आगे की बातें लिखी हैं:
प्रत्येक ब्रह्माण्ड अंडाकार होता है और इसमें तीन लोक एवं 14 नक्षत्रिय तंत्र होता है. और इसके नीचे 28 नर्क होते हैं.
- ऊर्ध्व लोक देवी-देवताओं,आत्माओं,पितरों का निवास स्थल है.
- मध्य लोक मानवों, पशु,पक्षियों,वनस्पतिओं का निवास स्थल है.
- अधो लोक असुरों और नाग का निवास स्थल है.
हम सभी मध्य लोक में हैं. उर्ध्व और अधो लोक में 14 गैलेक्सीयाँ इस प्रकार हैं:
उर्ध्वलोक अधोलोक
सत्यलोक 1 अताल
तपोलोक 2 विताल
जनलोक 3 सुताल
महर्लोक 4 रसताल
स्वर्गलोक 5 तलाताल
भुवर्लोक 6 महाताल
भूलोक 7 पाताल
ये सभी ग्रह देवी दुर्गा के नियंत्रण में हैं अत: सृष्टि को देवी धाम भी कहा जाता है।
मानव शरीर में ब्रह्माण्ड का रूप:
ऊपर दिखाई गयी हमारी गैलेक्सी की आकृति पर आपने ध्यान दिया होगा। कुंडली के आकार की इस रचना को शिशुमार कहते हैं।शिशुमार का वर्णन जापानी टेक्स्ट्स में एक विशेष प्रकार के ड्रैगन के रूप में आता है जो अपनी ही पूंछ को खा रहा है।
Shishumar/Ouroboros/Dragon
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ऋषियों ने प्रत्येक गैलेक्सी की तुलना Spinal Cord में स्थित विभिन्न कुंडलिनियों से की है। ध्यान योग से एक मनुष्य इन कुंडलियों की शक्तियों को जगा सकता है और इन कुंडलनी के जाग्रण से मानव मन का उर्ध्व रूपांतरण होता है।
अभी तक सभी कुंडलिनी चक्रों को जगाने में सफल सिर्फ एक व्यक्ति हुआ है जिनका नाम है गौतम बुद्ध।
Kundalini rising through the Chakras |
रोचक बात है की बिलकुल ऐसा वर्णन जैन ग्रन्थ भी करते हैं। जैनों के पवित्र चिन्ह 'लोक-पुरुष' के भी वैसे ही तीन भाग होते हैं उच्च लोक,मध्य लोक और निम्न लोक।
जैन पंथ के अनुसार लोक पुरुष के सिर में दिव्य लोकों की एक श्रेणी होती है जहां पे खुशहाली और आनंद है ,मध्य में मानव और जंतु हैं और लोक पुरुष के पैर में 7 नरकों का क्रम होता है।
Lokas in Jain cosmology
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उर्ध्व लोक:
सत्यलोक:
तपोलोक:
चारों चिरकालिक कुमारों का निवास स्थल।ये कुमार ब्रह्मा के बनाये हुए हैं जिनके नाम हैं-सनत, सनक, सनंदन और सनातन।
The Kumars preaching Supreme Knowledge |
जनलोक:
दिव्य सिद्धियों युक्त मुनियों का निवास स्थल
महर्लोक:
ये भी ऋषियों मुनियों का निवास स्थल है किन्तु यहाँ पे रहने वाले ऋषियों के पास जन लोक के ऋषियों से थोड़ी कम सिद्धियाँ हैं।
Sages of Jana-Loka and Mahar-loka worshipping the Lord
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स्वर्गलोक:
33 देवताओं का निवास स्थल। प्रत्येक देवता को ब्रह्माण्ड ने सञ्चालन का एक विशेष कार्य सौंपा गया है .जैसे इन्द्रों को वर्षा का नियंत्रण और वरुण को वायु का नियंत्रण करने का कार्य दिया गया है।
The Heavenly Realm
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भुवर्लोक:
ये लोक हमारे सौर मंडल के सन्दर्भ में है, 5 मुख्य ग्रह और सूर्य देवता एवं 2 और मंडल ध्रुव व सप्त ऋषि।
ध्रुव (Polar Star) हमारे गैलेक्सी शिशुमार का केंद्र है और इसके घुर्णन से सारे तंत्र का घूर्णन नियंत्रित होता है।
हमारी पृथ्वी पूर्णतया उर्ध्व होने के बजाये ध्रुव की दिशा में हलकी सी झुकी होती है।
Pole Star is the center of our Galaxy-Shishumar(Milky-Way) |
पृथ्वी इसी झुकाव के कारण उतरी ध्रुव पे सर्दियों के समय 6 महीने रात और गर्मियों के समय 6 महीने दिन होता है।
Earth is tilted towards Pole star |
सप्त ऋषि और ध्रुव को हम पृथ्वी से भी देख सकते हैं।
Sapta-rishi Loka revolves around the Pole Star
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सूर्य अपनी अक्ष पे भी घूर्णन गति करता है साथ ही साथ एक और प्रकार की गति करता है।सूर्य का पथ 6 महीनों के लिए बाहय धुरी पे होता है और 6 महीनों के लिए अंत: धुरी पे होता है ,इसी की वजह से सर्दी और गर्मी का चक्र चलता है।सूर्य की इस गति को उत्तरायण और दक्षिणायन कहते हैं।
Uttarayan and Dakshinayan motion of sun is responsible for summer and winter cycle |
मध्यलोक
भूमंडल में निम्न सात लोक होते हैं जहां मरणशील जीवों का जन्म होता है।यहाँ ब्रह्माण्ड को विशाल समुद्र की तरह माना गया है जिसमें विभिन्न ग्रह द्वीप की तरह हैं।उनमें से हमारा ग्रह पृथ्वी भी जम्बुद्वीप के नाम से जाना जाता है।जम्बुद्वीप समेत सात ग्रह इस प्रकार हैं।
- जम्बू-द्वीप
- प्लक्ष -द्वीप
- सल्माली -द्वीप
- कुषा -द्वीप
- क्रौंचा -द्वीप
- शक -द्वीप
- पुष्कर -द्वीप
मध्यलोक में हमारी पृथ्वी के अलावा 6 अन्य ग्रहों पर भी जीवन बसा करता है।
अधोलोक
पृथ्वी से 70000 योजन निचे अधोलोक है जिसे बिला-स्वर्ग भी कहते हैं।ये संसार इस प्रकार हैं:
- अताल
- विताल
- सुताल
- रसताल
- तलाताल
- महाताल
- पाताल
इन ग्रहों पे दैत्य, दानव, पनी, निवत कवच, राक्षस, कालकेय, नागा, उरग रहते हैं। जो भोग की सभी वस्तुयों से युक्त एक नकली स्वर्ग में रहते हैं यहाँ कोई आध्यात्मिक अस्तित्व नहीं है।
Rakshas denizens enjoy all Material opulences
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ग्रंथों में 8 नाग राजाओं का जिक्र है - वासुकी, तक्षक, नंदा, उपनंदा, सागर, बलवान, अनावाताप्ता और उत्पा।इन्ही आठों का वर्णन जापानी और चाइनीज टेक्स्ट में भी 8 ड्रैगन के रूप में है।
नरक लोक:
भौमिक ग्रहों पे किये गए बुरे कर्मों की सजा के लिए नरक लोक में 28 विभिन्न प्रकार के नरक हैं:
रौरव, सुकर, रोध, ताल, विश्सन, महाज्वाल, तप्ताकुम्भ, लावन, विलोहित, रुधिरामभ, वैतरणी, कृमिश, कृमिभोजन, असिपत्रावना, कृष्णा, लालाभाक्षा, दारुण, पुयुवः, पाप, वह्निज्वाल, अधह्शिरा, संदंश, कल्सुत्र, तामस, अविची, स्वभोजन, अप्रतिष्ठित और अप्रची .
ये सभी नरक सूर्य पुत्र यमराज की अध्यक्षता में रहते हैं और उनकी अदालत में आत्माओं के पापों के अनुसार सजा तय की जाती है।
The different Hells
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ये सभी नरक सूर्य पुत्र यमराज की अध्यक्षता में रहते हैं और उनकी अदालत में आत्माओं के पापों के अनुसार सजा तय की जाती है।
Yamraj in his Court of Justice
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इन ग्रहों के निचे गर्भोदक सागर है जिस से एक ब्रह्माण्ड का निचला आधा हिस्सा भरा होता है।
चलते चलते:
जिस ईश्वर ने ये विशाल सृष्टि बनायी है, जिसने दिन,रात, सूर्य,चन्द्रमा, पहाड़,नदी,हवा,तकदीरें बनायी, हम उसे एक मिट्टी की मूर्ति में खोजते हैं। महर्षि दयानंद सरस्वती ने कहा था कि मैं उस ईश्वर की मूर्ति बनाने की सोच भी कैसे सकता हूँ जिसने खुद मुझे बनाया है।
इसी भावना के साथ चलते चलते 'Oh My God' फिल्म के इस सुन्दर गाने की एक झलक शेयर कर रहा हूँ:
Nice description of 14 galaxies.
जवाब देंहटाएंare they really exist??
Nice knowledge yar...
जवाब देंहटाएंHam to is bhavsaagar se pata nahin kab tarengen...
One request...
Can you publish more about Kundlini Jagran...
अताल, विताल, रसताल नहीं, अतल, वितल, रसातल
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